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Sarfaraz Khan के संघर्ष की कहानी..पिता Naushad Khan की जुबानी..

सरफ़राज़ खान के संघर्ष की कहानी..उनके..हानिकारक बापू..नौशाद खान की जुबानी..भूखा सुलाया, ट्रेन में धक्के खिलवाया..खूब रुलाया..तब जा कर..सरफ़राज़ खान..घरेलू क्रिकेट का डॉन ब्रैडमन और टीम इंडिया का नया सुपरस्टार कहलाया।

सालों तक रणजी ट्रॉफी में शतकों का अंबार लगाने..बल्ले से लगातार रन बनाने के बाद आखिरकार सरफ़राज़ खान टीम इंडिया में आ ही गए। इंग्लैंड के खिलाफ राजकोट टेस्ट में सरफ़राज़ खान को डेब्यू करने का मौका मिला। आप सभी ने देखा होगा..हमने भी उसपर एक न्यूज़ बनाई थी..आपको बताया था कि..जब सरफराज कै टेस्ट कैप मिला तो मैदान पर मौजूद उनके पिता नौशाद खान रो पड़े।

दरअसल..नौशाद खान के आंसू सिर्फ ख़ुशी के आंसू नहीं थे..संघर्ष के भी आंसू थे..वो संघर्ष जो उन्होंने अपने बेटे सरफ़राज़ खान को क्रिकेटर बनाने के लिए किया। दरअसल, नौशाद खुद क्रिकेटर रह चुके हैं। लेकिन..उन्हें कभी रणजी या फिर किसी बड़े टूर्नामेंट में खेलने का मौका नहीं मिला। लेकिन उन्होंने अपने बेटों पर खूब मेहनत की। ख़ास कर की सरफ़राज़ पर। अब सरफराज खान टीम इंडिया में पहुंच गए हैं तो वहीं उनके छोटे भाई मुशीर खान का भी रणजी डेब्यू हो चुका है। मतलब एक तरह से सरफराज के पिता नौशाद खान ने अपने बेटे को टीम इंडिया तक पहुंचाने के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया था।

यह कहानी आमिर खान की फिल्म दंगल जैसी नहीं लग रही? जी हाँ, है तो..लेकिन यहाँ पर सरफ़राज़ के जो हानिकारक बापू हैं..वह कुछ ज्यादा ही हानिकारक थे..दरअसल इसका खुलासा खुद उन्होंने किया..जी हाँ, आज तक को दिए एक इंटरव्यू में..सरफ़राज़ खान के पिता नौशाद खान ने खुद बताया कि, वह सरफ़राज़ के साथ कितने कठोर थे।

नौशाद खान ने अपने इंटरव्यू में कहा, “मैंने सरफराज को जानबूझकर रात में भूखा सुलाया। घर पर मोटरसाइकिल होने के बाद भी ट्रेन सफर करवाता था। क्योंकि इतना बड़ा किटबैग ट्रेन में ले जाना और जल्द आउट होने पर कैसा फील होता है यह सब उसे सिखाना था। बचपन में सरफराज का पूरा फोकस सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट पर था। न तो उसने कभी गोटियां खेली और न ही पतंग उड़ाया। वह दोस्तों के साथ कभी इधर उधर नहीं घूमा। वह सुबह 4 बजे उठता था। उसकी मां खाना बनाकर देती थी। फिर वह प्रैक्टिस के लिए निकल जाता था। घर आकर भी प्रैक्टिस करता था। यह रूटीन सालों तक चलता रहा। उसे कैप मिली तो लगा कि मेरा सपना पूरा हो गया।”

सपना पूरा कैसे नहीं होता..इतनी मेहनत..इतनी लगन..और..इतनी शिद्दत से सरफ़राज़ खान ने टीम इंडिया की जर्सी पाने की कोशिश की थी..इसी लिए..हर ज़र्रे ने उसे उनसे मिलाने की साज़िश की..

सरफ़राज़ खान और उनके पिता का सपना आखिरकार साकार हो ही गया..हमारा सलाम सरफ़राज़ खान के पिता नौशाद खान को..हमारा सलाम है हर उस पिता को..जो अपना पेट काट कर..अपनी जेब काट कर..अपनी हर ख्वाहिश को मार कर..अपने बेटे के देखे हुए हर छोटे बड़े सपने को पूरा करता है।

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